कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाए
बहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(806) Peoples Rate This
मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब था
दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं
बैठे रहो कुछ देर अभी और मुक़ाबिल
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर
आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
शाम कठिन है रात कड़ी है
बे-वफ़ाओं को वफ़ाओं का ख़ुदा हम ने कहा
तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त
क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
नई दुनिया
तुम्हारी याद