क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
सहरा पे जैसे टूट के बरसात हो गई
वीरान बस्तियों में मिरा दिन हुआ तमाम
सुनसान जंगलों में मुझे रात हो गई
करती है यूँ भी बात मोहब्बत कभी कभी
नज़रें मिलीं न होंट हिले बात हो गई
ज़ालिम ज़माना हम को अगर दे गया शिकस्त
बाज़ी मोहब्बतों की अगर मात हो गई
हम को निगल सकें ये अँधेरों में दम कहाँ
जब चाँदनी से अपनी मुलाक़ात हो गई
बाज़ार जाना आज सफल हो गया मिरा
बरसों के बा'द उन से मुलाक़ात हो गई
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