आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा
रंग कैसा हो ये सोचोगे तो याद आऊँगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊँगा
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊँगा
ध्यान जाएगा बहर-हाल मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊँगा
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊँगा
चाँदनी रात में फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊँगा
जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊँगा
याद आऊँगा उदासी की जो रुत आएगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊँगा
शेल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊँगा
शम्अ' की लौ पे सर-ए-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊँगा
जब किसी फूल पे ग़श होती हुई बुलबुल को
सेहन-ए-गुलज़ार में देखोगे तो याद आऊँगा
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