वो सवालात मुझ पर उछाले गए
वो सवालात मुझ पर उछाले गए
चाह कर भी न जो मुझ से टाले गए
था ये रौशन जहाँ रौशनी उन से थी
वो गए साथ उन के उजाले गए
ख़त तो यूँ सैकड़ों मैं ने उन को लिखे
जो भी दिल से लिखे वो सँभाले गए
जब ज़बाँ बंद थी रोटी मिलती रही
खोल दी फिर तो मुँह के निवाले गए
ख़ार राहों में ग़ैरों ने डाले मगर
दोस्तों के इशारों पे डाले गए
जग ने तारीफ़ जितनी भी मेरी सुनी
दोष उतने ही मुझ में निकाले गए
अश्क पी कर जो ग़ैरों के हँसते रहे
लोग 'कलकल' कहाँ वो निराले गए
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