यूँ जो ढूँडो तो यहाँ शहर में अन्क़ा निकले
यूँ जो ढूँडो तो यहाँ शहर में अन्क़ा निकले
चाहने वाला जो चाहो तो ना-असला निकले
जी में है चीर के सीना मैं निकालूँ दिल को
ता किसी ढब से तो पहलू का ये काँटा निकले
मरज़-ए-इश्क़ ये मोहलिक है कि उस के डर से
चर्ख़-ए-चार्म ये जो ढूँडो तो मसीहा निकले
है यक़ीं गोर पे गर मेरी तो आ जावे कभी
दीद को तेरी मिरा क़ब्र से मुर्दा निकले
जाँ-कनी में है तड़पता दिल-ए-बेताब 'सुरूर'
मेरे ईसा से कहो यहाँ भी कभी आ निकले
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