जब शाम जन्नत में हुई
जब शाम जन्नत में हुई
बाग़ों में हर-सू घूम कर
हूरें मिरी घर आ गईं
चूमा हर इक का मैं ने मुँह
चुम्कार कर पुच्कार कर
मैं ने उन्हें बिठला लिया
पर जब गिना मैं ने उन्हें
जो सब से प्यारी उन में थी
थी वो ही गुम
रहता था घर के पास ही
काफ़िर-अदा इक मौलवी
मैं ने गरज कर ये कहा
उस से कि ओ मलऊन इधर
आ तो ज़रा
सच सच बता क्या बात है
वर्ना दबोचूंगा तिरा मोटा गला'
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