चोर की दुआ
ऐ ख़ालिक़-ए-हर-अर्ज़-ओ-समा वक़्त-ए-दुआ है
बंदे पे तिरे आज अजब वक़्त पड़ा है
पहले भी हर आफ़त से मुझे तू ने बचाया
दाइम रहा मुझ पे तिरे अल्ताफ़ का साया
सच तो ये है कुत्तों को सुला रखता है तू ही
मेरे लिए दरवाज़ा खुला रखता है तू ही
इंसाफ़ के पंजे से मुझे तू ने छुड़ाया
और दाम-ए-हवालात में औरों को फंसाया
नामी कोई डाकू नहीं छोटा सा हूँ इक चोर
रहम आता है बंदों पे बहुत दिल का हूँ कमज़ोर
छे सात सौ मिल जाए तो बंदे को है काफ़ी
वो चोर नहीं हूँ जो करे वादा-ख़िलाफ़ी
इस छत पे कमंद अपनी मैं फेंकूँगा घुमा कर
हिम्मत दे मुझे इतनी कि चढ़ जाऊँ मैं फ़र-फ़र
बिस्मिल्लाह अरे-वाह मैं क़ुर्बान मैं क़ुर्बान
क्या ख़ूब लगी है कमंद अल्लाह तिरी शान
(847) Peoples Rate This