चार बजे
बैठे-बिठाए हो गई घर में मार-कटाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दुआ ने काम किया
अम्मी और अब्बा ने मिल कर मेरा काम तमाम किया
आज मोहल्ले-भर में गूँजी मेरी दुहाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
कितनी ख़ुशी से हम ने अपने पिटने की तय्यारी की
सारे घर में हम ने कैसी धूम मचाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
बी हम-साई तू क्यूँ आई थी तुझ को शायद इल्म नहीं
ये मेरे पिटने का मंज़र, कोई अच्छी फ़िल्म नहीं
तू मेरा ये 'मेटनी-शो' क्यूँ देखने आई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
चाय की मेज़ पे मैं ने कुछ नक़्स निकाले फ़ूड में थे
हाए-री क़िस्मत अम्मी अब्बा दोनों ही कुछ मूड में थे
बैठे बैठे उन को सूझी मेरी भलाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
तेरे हुक्म बिना ऐ दाता पत्ता तक नहीं हिलता है
मैं तो जानूँ तेरे ही दर से मुझ को सब कुछ मिलता है
थैंक यू थैंक यू तू ने कराई मेरी ठुकाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
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