दाएरे, कुछ नीम हल्क़े
ये रियाज़ी के बखेड़े
जी का इक जंजाल हैं
बातें
ज़ियाँ की
सूद की
मैं मुक़य्यद दाएरों में
इस तरह कोसों को तकता हूँ
जैसे इक बीमार बच्चा
नक़्श ओ लफ़्ज़ ओ सौत से
बेज़ार
बिस्तर पर
खुली खिड़की से
रंगीं
लाल
नीले
पीले बैलूनों को
हसरत की निगह से देखता है
जो मुअल्लक़ हैं फ़ज़ा में