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क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो - राज नारायण राज़ कविता - Darsaal

क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो

क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो

मतलब का मेरे जैसे कोई क़ाफ़िया न हो

गुल-दान में सजा के हैं हम लोग कितने ख़ुश

वो शाख़ एक फूल भी जिस पर नया न हो

हर लम्हा वक़्त का है बस इक ग़ुंचा-ए-बख़ील

मुट्ठी जो अपनी बंद कभी खोलता न हो

अब लोग अपने आप को पहचानते नहीं

पेश-ए-निगाह जैसे कोई आईना न हो

वहशी हवा की रूह थी दीवार-ओ-दर में रात

जंगल की सम्त कोई दरीचा खुला न हो

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In Hindi By Famous Poet Raj Narayan Raaz. is written by Raj Narayan Raaz. Complete Poem in Hindi by Raj Narayan Raaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.