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नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है - राज कुमार सूरी नदीम कविता - Darsaal

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

नाकामी-ए-हयात पे दिल शर्मसार है

दामान-ए-सब्र हिज्र में गो तार-तार है

वा'दे का उन के फिर भी हमें ए'तिबार है

फ़िक्र-ए-जहाँ मुझे न ग़म-ए-रोज़गार है

फिर भी न जाने किस लिए दिल बे-क़रार है

शाम-ए-फ़िराक़ शिद्दत-ए-ग़म बे-शुमार है

मुश्ताक़-ए-दीद आँख भी अब अश्क-बार है

गुलशन में उन को देख के महव-ए-ख़िराम-ए-नाज़

समझी निगाह-ए-शौक़ कि रक़्स-ए-बहार है

यूँ तो हज़ार बार उसे आज़मा चुके

फिर ए'तिबार-ए-वादा-ए-ग़फ़लत-शिआर है

मुद्दत हुई है क़त-ए-तअल्लुक़ किए 'नदीम'

उस जान-ए-इंतिज़ार का फिर इंतिज़ार है

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In Hindi By Famous Poet Raj Kumar Soori Nadeem. is written by Raj Kumar Soori Nadeem. Complete Poem in Hindi by Raj Kumar Soori Nadeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.