गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर
गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर
न हम को रास आई ज़िंदगी तुम से जुदा हो कर
फ़क़त अहल-ए-जुनूँ वाक़िफ़ हैं इस राज़-ए-हक़ीक़त से
हयात-ए-जाविदाँ मिलती है उल्फ़त में फ़ना हो कर
कहाँ उन के दिलों में वो ख़लिश सोज़-ए-मोहब्बत की
तिरे तीर-ए-नज़र से जो रहे ना-आश्ना हो कर
तुम्हारी बेवफ़ाई का फ़साना हर ज़बाँ पर है
ज़माने को दिखा दो इंतिक़ामन बा-वफ़ा हो कर
फ़ज़ाएँ महक उट्ठी हैं तिरी ज़ुल्फ़ों की ख़ुश्बू से
तिरे कूचे से जब भी आई है बाद-ए-सबा हो कर
किसी की बू-ए-पैराहन गुलिस्ताँ से गुज़रती है
शमीम-ए-जाँ-फ़िज़ा बन कर कभी बाद-ए-सबा हो कर
'नदीम' इस दौर में हर गाम पर ता'न-ओ-मलामत हैं
बहुत दुश्वार है दुनिया में जीना बा-वफ़ा हो कर
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