नवा-ए-दिल ने करिश्मे दिखाए हैं क्या क्या
नवा-ए-दिल ने करिश्मे दिखाए हैं क्या क्या
मिरी अज़ाँ ने नमाज़ी जगाए हैं क्या क्या
जमाल-ए-यार तिरी आब-ओ-ताब क्या कहिए
नज़र नज़र पे क़दम डगमगाए हैं क्या क्या
अदा-ए-नाज़ को अंदाज़-ए-दिलबरी समझे
फ़रेब अहल-ए-मोहब्बत ने खाए हैं क्या क्या
ज़मीं ज़मीं न रही और फ़लक फ़लक न रहा
मक़ाम-ओ-वक़्त भी गर्दिश में आए हैं क्या क्या
वो तेरी शोख़-निगाही वो तेरी ख़ंदा-लबी
दिल-ए-ग़रीब पे चरके लगाए हैं क्या क्या
कभी ख़ुलूस-ए-मोहब्बत कभी गुरेज़-ओ-फ़रार
बना बना के मुक़द्दर मिटाए हैं क्या क्या
कभी तो देख कि मेरी तबाह-हाली पर
हयात-ओ-मौत ने आँसू बहाए हैं क्या क्या
है आज ख़ून-ए-तमन्ना तो कल उम्मीद की मौत
दिल-ए-हज़ीं ने जनाज़े उठाए हैं क्या क्या
निगाह-ए-'क़ैस' तिरी दस्तरस को मान गए
कहाँ कहाँ से मज़ामीं चुराए हैं क्या क्या
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