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हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ - राज कुमार क़ैस कविता - Darsaal

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

तिरी सिफ़ात को समझूँ तो तुझ से बात करूँ

तू कोहसार में वादी में दश्त-ओ-सहरा में

मैं तुझ को ढूँड निकालूँ तो तुझ से बात करूँ

तू शाख़ शाख़ पे बैठा है फूल की सूरत

मैं ख़ार ख़ार से उलझूँ तो तुझ से बात करूँ

तिरे इशारों से बढ़ कर तिरा बयाँ मुबहम

मैं तेरी बात को समझूँ तो तुझ से बात करूँ

तू इतना दूर कि पहचानना भी मुश्किल है

तुझे क़रीब से देखूँ तो तुझ से बात करूँ

झिजक झिजक के अगर हो तो बात बात नहीं

मैं तेरी आँख में झाँकूँ तो तुझ से बात करूँ

तू मेरा दोस्त है दुश्मन है या कि कुछ भी नहीं

मैं तेरे दिल को टटोलूँ तो तुझ से बात करूँ

ये मौज मौज तलातुम पे डूबना मेरा

मैं इत्तिफ़ाक़ से उभरूँ तो तुझ से बात करूँ

ज़बान-ए-'क़ैस' पे हर वक़्त तेरी बातें हैं

ज़बान-ए-क़ैस जो सीखूँ तो तुझ से बात करूँ

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In Hindi By Famous Poet Raj Kumar Qais. is written by Raj Kumar Qais. Complete Poem in Hindi by Raj Kumar Qais. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.