किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं
किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं
शम्अ' में सोज़ ज़ियादा है कि परवाने में
लज़्ज़त-ए-दर्द को इक ख़ार मयस्सर न हुआ
दिल का काँटा न निकाला गया वीराने में
मेरे पुर-दर्द बयाँ ने मुझे मरने न दिया
मौत को नींद सी आई मिरे अफ़्साने में
आब-ए-कौसर तो न था चश्म-ए-सियह में तेरी
पड़ गई जान तुझे देख के दीवाने में
हक़-परस्ती मिरी का'बे से सदा देती है
दिल में कर याद ख़ुदा बैठ के बुत-ख़ाने में
ग़म ग़लत करता हूँ पी पी के जिगर के आँसू
शबनमी मय है मिरी आँख के पैमाने में
मुझ को जब साक़ी-ए-मग़रूर ने साग़र न दिया
'औज' आँसू निकल आए मिरे मयख़ाने में
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