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और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद - रईस सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

घर बनाने की मिलीं हम को सज़ाएँ शायद

भर गए ज़ख़्म मसीहाई के मरहम के बग़ैर

माँ ने की हैं मिरे जीने की दुआएँ शायद

मैं ने कल ख़्वाब में ख़ुद अपना लहू देखा है

टल गईं सर से मिरे सारी बलाएँ शायद

मैं ने कल जिन को अंधेरों से दिलाई थी नजात

अब वही लोग मिरे दिल को जलाएँ शायद

फिर वही सर है वही संग-ए-मलामत उस का

दर-गुज़र कर दीं मिरी उस ने ख़ताएँ शायद

अब वो कहता नहीं मुझ से कि बरहना तू है

छिन गईं उस के बदन की भी क़बाएँ शायद

इस भरोसे पे खिला है मिरा दरवाज़ा 'रईस'

रूठने वाले कभी लौट के आएँ शायद

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In Hindi By Famous Poet Rais Siddiqui. is written by Rais Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Rais Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.