सच्चाई
मेरे एक हाथ पर महताब
और एक हाथ पर ख़ुर्शीद रख दो
फिर भी मैं वो बात दोहराऊँगा
जो सच है
ये सच्चाई
जो नाज़ुक बेल की मानिंद
हुस्न-ओ-ख़ैर की ख़ुश्बू लिए
लम्हे से लम्हे की तरफ़ चलती रही
और मिरे बाग़ तक पहुँची
सो जब में मामता की काँपती बाहोँ में ख़्वाबीदा था
मेरे बाप ने मुझ को जगाया
और कहा
ला-इलाहा-इलल्लाह
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