ख़ानम-जान
मिट्टी का बदन
नाचे तो किरन
वो रौशनियों में नाचने वाली
ख़ानम-जान
उस के हाथों की बदली में
मेरे बाज़
अपना आँगन भूल गए
मैं ने कहा
मैं ने तेरी दो आँखों में
कितने बिस्तर पैंट किए
जिस वक़्त ये कमरा छोड़ूँगा
अपने सारे ख़्वाब
तुझ से वापस ले लूँगा
ख़ानम-जान
उस ने कहा
आओ सुब्ह से पहले
हम तुम
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