ये सर्द रात कोई किस तरह गुज़ारेगा
ये सर्द रात कोई किस तरह गुज़ारेगा
हवा चली तो लहू को लहू पुकारेगा
ये सोचते हैं कि इस बार हम से मिलने को
वो अपने बाल किस अंदाज़ में सँवारेगा
शिकायतें ही करेगा कि ख़ुद-ग़रज़ निकले
वो दिल में कोई बुलेट तो नहीं उतारेगा
यही बहुत है कि वो ख़ुद निखरता जाता है
किसी ख़याल का चेहरा तो क्या निखारेगा
यही बिसात अगर है तो एक रोज़ 'फ़रोग़'
जो हम से जीत चुका है वो हम से हारेगा
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