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शहर का शहर बसा है मुझ में - रईस फ़रोग़ कविता - Darsaal

शहर का शहर बसा है मुझ में

शहर का शहर बसा है मुझ में

एक सहरा भी सजा है मुझ में

कई दिन से कोई आवारा ख़याल

रास्ता भूल रहा है मुझ में

रात महकी तो फिर आँखें मल के

कोई सोते से उठा है मुझ में

धूप है और बहुत है लेकिन

छाँव इस से भी सिवा है मुझ में

कब से उलझे हैं ये चेहरों के हुजूम

कौन सा जाल बिछा है मुझ में

कोई आलम नहीं बनता मेरा

रंग ख़ुश्बू से जुदा है मुझ में

ऐसा लगता है कि जैसे कोई

आईना टूट गया है मुझ में

आते जाते रहे मौसम क्या क्या

जो फ़ज़ा थी वो फ़ज़ा है मुझ में

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In Hindi By Famous Poet Rais Farogh. is written by Rais Farogh. Complete Poem in Hindi by Rais Farogh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.