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रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में - रईस फ़रोग़ कविता - Darsaal

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

मेरे लिए कोई फ़र्क़ नहीं है होने और न होने में

बरसों बाद उसे देखा तो आँखों में दो हीरे थे

और बदन की सारी चाँदी छुपी हुई थी सोने में

धरती तेरी गहराई में होंगे मीठे सोत मगर

मैं तो सर्फ़ हुआ जाता हूँ कंकर पत्थर ढोने में

घर में तो अब क्या रक्खा है वैसे आओ तलाश करें

शायद कोई ख़्वाब पड़ा हो इधर उधर किसी कोने में

साए में साया उलझ रहा था चाहत हो कि अदावत हो

दूर से देखो तो लगते थे सूरज चाँद बिछौने में

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In Hindi By Famous Poet Rais Farogh. is written by Rais Farogh. Complete Poem in Hindi by Rais Farogh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.