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हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से - रईस फ़रोग़ कविता - Darsaal

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

किसी रौशनी के सराब हैं कि मिले हर अपने पराए से

ख़म-ए-जादा से मैं पियादा-पा कभी देख लेता हूँ ख़्वाब-सा

कहीं दूर जैसे धुआँ उठा किसी भूली-बिसरी सराए से

उठी मौज-ए-दर्द तो यक-ब-यक मिरे आस-पास बिखर गए

मह-ए-नीम-शब के इधर उधर जो लरज़ रहे थे किनाए से

मिला मुझ को राह में इक नगर जहाँ कोई शख़्स न था मगर

वो ज़मीं शगुफ़्ता शगुफ़्ता सी वो मकाँ नहाए नहाए से

मिरे कार-ज़ार-ए-हयात में रहे उम्र-भर ये मुक़ाबले

कभी साया दब गया धूप से कभी धूप दब गई साए से

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In Hindi By Famous Poet Rais Farogh. is written by Rais Farogh. Complete Poem in Hindi by Rais Farogh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.