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फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा - रईस फ़रोग़ कविता - Darsaal

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

हवा में धूल थी मैं ने हवा से कुछ न कहा

यही ख़याल कि बरसे तो ख़ुद बरस जाए

सो उम्र-भर किसी काली घटा से कुछ न कहा

हज़ार ख़्वाब थे आँखों में लाला-ज़ारों के

मिली सड़क पे तो बाद-ए-सबा से कुछ न कहा

वो रास्तों को सजाते रहे उन्हों ने कभी

घरों में नाचने वाली बला से कुछ न कहा

वो लम्हा जैसे ख़ुदा के बग़ैर बीत गया

उसे गुज़ार के मैं ने ख़ुदा से कुछ न कहा

शबों में तुझ से रही मेरी गुफ़्तुगू क्या क्या

दिनों में चाँद तिरे नक़्श-ए-पा से कुछ न कहा

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In Hindi By Famous Poet Rais Farogh. is written by Rais Farogh. Complete Poem in Hindi by Rais Farogh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.