देर तक मैं तुझे देखता भी रहा
देर तक मैं तुझे देखता भी रहा
साथ इक सोच का सिलसिला भी रहा
मैं तो जलता रहा पर मिरी आग में
एक शोला तिरे नाम का भी रहा
शहर में सब से छोटा था जो आदमी
अपनी तन्हाइयों में ख़ुदा भी रहा
ज़िंदगी याद रखना कि दो चार दिन
मैं तिरे वास्ते मसअला भी रहा
रंग ही रंग था शहर-ए-जाँ का सफ़र
राह में जिस्म का हादसा भी रहा
तुम से जब गुफ़्तुगू थी तो इक हम-सुख़न
कोई जैसे तुम्हारे सिवा भी रहा
वो मिरा हम-नशीं हम-नवा हम-नफ़स
भूँकता भी रहा काटता भी रहा
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