Ghazals of Rais Farogh (page 1)
नाम | रईस फ़रोग़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Rais Farogh |
जन्म की तारीख | 1926 |
मौत की तिथि | 1982 |
जन्म स्थान | Karachi |
ये सर्द रात कोई किस तरह गुज़ारेगा
ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का
शहर का शहर बसा है मुझ में
सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से
रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में
फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई
मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ
कह रहे थे लोग सहरा जल गया
जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए
जंगल से आगे निकल गया
हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में
हवा ने बादल से क्या कहा है
हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है
हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से
गीत के बाद भी गाए जाऊँ
घर मुझे रात भर डराए गया
घर में सहरा है तो सहरा को ख़फ़ा कर देखो
गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए
गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है
फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है
फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा
इक अपने सिलसिले में तो अहल-ए-यक़ीं हूँ मैं
दुनिया का वबाल भी रहेगा
धूप में हम हैं कभी हम छाँव में
देर तक मैं तुझे देखता भी रहा
अपनी मिट्टी को सर-अफ़राज़ नहीं कर सकते
अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा कर