तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो
तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो
कुछ देर अपने साथ भी प्यारे! बसर करो
मुमकिन है ज़ात का उसी लम्हे में हो ज़ुहूर
इक लम्हा काएनात से क़त-ए-नज़र करो
तय्यारा-हा-ए-अहद-ए-रवाँ हैं सदा-शिगाफ़
मिस्ल-ए-शुआ-ए-नूर ख़ला में सफ़र करो
कब तक मुआमला ये दिमाग़ों से शहद का?
तासीर-ए-ज़हर बन के दिलों में गुज़र करो
कब तक ख़ुद अपने दिल में चुभोओगे बर्छियाँ
नोक-ए-सिनाँ से गुम्बद-ए-बे-दर में दर करो
मिलता नहीं मकाँ जो शरीफ़ों के शहर में
उट्ठो तवाइफ़ों के घराने में घर करो
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