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तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो - रईस अमरोहवी कविता - Darsaal

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

कुछ देर अपने साथ भी प्यारे! बसर करो

मुमकिन है ज़ात का उसी लम्हे में हो ज़ुहूर

इक लम्हा काएनात से क़त-ए-नज़र करो

तय्यारा-हा-ए-अहद-ए-रवाँ हैं सदा-शिगाफ़

मिस्ल-ए-शुआ-ए-नूर ख़ला में सफ़र करो

कब तक मुआमला ये दिमाग़ों से शहद का?

तासीर-ए-ज़हर बन के दिलों में गुज़र करो

कब तक ख़ुद अपने दिल में चुभोओगे बर्छियाँ

नोक-ए-सिनाँ से गुम्बद-ए-बे-दर में दर करो

मिलता नहीं मकाँ जो शरीफ़ों के शहर में

उट्ठो तवाइफ़ों के घराने में घर करो

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In Hindi By Famous Poet Rais Amrohvi. is written by Rais Amrohvi. Complete Poem in Hindi by Rais Amrohvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.