जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ
जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ
वहीं सूली पे लटकाया गया हूँ
सुना हर बार मेरा कलमा-ए-सिदक़
मगर हर बार झुठलाया गया हूँ
कभी माज़ी का जैसे तज़्किरा हो
ज़बाँ पर इस तरह लाया गया हूँ
अभी तदफ़ीन बाक़ी है अभी तो
लहू से अपने नहलाया गया हूँ
दवामी अज़्मतों के मक़बरे में
हज़ारों बार दफ़नाया गया हूँ
तरस कैसा कि इस दार-उल-बला में
अज़ल के दिन से तरसाया गया हूँ
न जाने कौन से साँचे में ढालें
अभी तो सिर्फ़ पिघलाया गया हूँ
मैं इस हैरत-सरा-ए-आब-ओ-गिल में
ब-हुक्म-ए-ख़ास भेजवाया गया हूँ
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