Ghazals of Rais Amrohvi (page 1)

Ghazals of Rais Amrohvi (page 1)
नामरईस अमरोहवी
अंग्रेज़ी नामRais Amrohvi
जन्म की तारीख1914
मौत की तिथि1988
जन्म स्थानKarachi

ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है

ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

ये फ़क़त शोरिश-ए-हवा तो नहीं

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू

सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है

सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए

रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर

रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर

'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

राज़-ए-गिरफ़्तगी न असीर-ए-लहन से पूछ

मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले

माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ

मैं जो तन्हा रह-ए-तलब में चला

कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई

जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

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