वस्ल के मरहले से हिज्र की मंज़िल की तरफ़

वस्ल के मरहले से हिज्र की मंज़िल की तरफ़

इश्क़ में बढ़ रहे हैं आख़िरी मुश्किल की तरफ़

लाख समझाता हूँ मैं उस को मगर होते ही शाम

एक हसरत चली आती है मिरे दिल की तरफ़

बे-नियाज़ाना तिरी ओर चले तो थे पर अब

ग़ौर से देखते हैं हसरत-ए-हाइल की तरफ़

शहर का शहर है आशोब की ज़द में सो यहाँ

किस को फ़ुर्सत है कि देखे हक़-ओ-बातिल की तरफ़

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In Hindi By Famous Poet Rahul Jha. is written by Rahul Jha. Complete Poem in Hindi by Rahul Jha. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.