रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी

रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी

जब ख़ुद उस को न थी दरकार शनासाई मिरी

ये मिरी चीज़ है सो इस का भरोसा है मुझे

ख़ुद मिरे काम न आएगी मसीहाई मिरी

उस ने इक बार तो झाँका भी था मुझ में लेकिन

उस से देखी न गई वुसअत-ए-तन्हाई मिरी

तुम ये क्या सोच के गुज़री थी मिरे माज़ी से

तुम ये क्या सोच के शादाबी उठा लाई मिरी

बहर-ए-पायाब समझ के यहाँ उतरो न अभी

मेरा दिल ख़ुद भी नहीं जानता गहराई मिरी

तेरी ख़ुश्बू तिरी तासीर जुदा है मुझ से

तेरी मिट्टी से न हो पाएगी भरपाई मिरी

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In Hindi By Famous Poet Rahul Jha. is written by Rahul Jha. Complete Poem in Hindi by Rahul Jha. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.