रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी
रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी
जब ख़ुद उस को न थी दरकार शनासाई मिरी
ये मिरी चीज़ है सो इस का भरोसा है मुझे
ख़ुद मिरे काम न आएगी मसीहाई मिरी
उस ने इक बार तो झाँका भी था मुझ में लेकिन
उस से देखी न गई वुसअत-ए-तन्हाई मिरी
तुम ये क्या सोच के गुज़री थी मिरे माज़ी से
तुम ये क्या सोच के शादाबी उठा लाई मिरी
बहर-ए-पायाब समझ के यहाँ उतरो न अभी
मेरा दिल ख़ुद भी नहीं जानता गहराई मिरी
तेरी ख़ुश्बू तिरी तासीर जुदा है मुझ से
तेरी मिट्टी से न हो पाएगी भरपाई मिरी
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