तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला
तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला
या'नी शराब ला मिरे साक़ी शराब ला
मिट जाएँ जिस से गर्दिश-ए-दौराँ की तल्ख़ियाँ
वो जाम-ए-ख़ुश-गवार मिला कर गुलाब ला
वो मय कि जिस से हर ग़म-ओ-अंदोह-ओ-यास का
हो जाए हश्र तक के लिए सद्द-ए-बाब ला
पी किस क़दर पियूँगा अभी किस क़दर न पूछ
दे पहले इस का बा'द को लेना हिसाब ला
काली घटा की तुझ को क़सम जान-ए-मय-कदा
ताख़ीर कर न बहर-ए-ख़ुदा ला शिताब ला
वो देख सर पे चादर-ए-रहमत है ज़ौ-फ़गन
छाई है मय-कदे पे रिदा-ए-सहाब ला
राज़-ए-हयात-ओ-मौत का उक़्दा जो खोल दे
मिल जाए जिस से ख़्वाब में ताबीर ख़्वाब ला
ऐसी न हो कि पी के बनूँ और मुत्तहिम
बातिल-शिकन हो जो वो हक़ीक़त-ए-मआ'ब ला
साक़ी ग़रज़ ये तुझ से गुज़ारिश है 'बर्क़' की
आँखों से जो उठा दे दुई का हिजाब ला
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