क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें
क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें
हो न इतना भी मोहब्बत में तो क्या काम करें
हाए तुर्बत पे मरी नाज़ से कहना उन का
आप लेटे हुए अब हश्र तक आराम करें
इस ज़माने में तिरे बादिया-पैमा भी अजब
जम के बैठें जो कहीं मिस्ल-ए-नगीं नाम करें
काबा-ओ-दैर का मिट जाए जहाँ से झगड़ा
जल्वा-ए-हुस्न-ए-हक़ीक़त वो अगर आम करें
शैख़-जी ये भी कोई बात है मयख़ाने में
आप रोज़ा रहें हम शग़्ल-ए-मय-ओ-जाम करें
मुफ़्त-ख़ोरी का तरीक़ा नहीं अच्छा साहब
हम भी कुछ काम करें आप भी कुछ काम करें
आज ही क्यूँ न गले मिल लें किसे कल मालूम
हम कहाँ सुबह करें आप कहाँ शाम करें
आप का नक़्श-ए-क़दम पेश-ए-नज़र है जिन के
सज्दा-ए-शौक़ न क्यूँकर वो ब-हर-गाम करें
हँस के फ़रमाते हैं मुझ आशिक़-ए-गुमनाम से वो
आप बदनाम जो हो जाएँ बड़ा नाम करें
सच तो है अपनी ही ग़फ़लत ने है रौंदा हम को
किस लिए हम गिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम करें
मिल के गुलचीं से ये सय्याद ने की है साज़िश
फूँक कर सहन-ए-चमन बर्क़ को बदनाम करें
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