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दिल छोड़ के हर राहगुज़र ढूँढ रहा हूँ - रहमत इलाही बर्क़ आज़मी कविता - Darsaal

दिल छोड़ के हर राहगुज़र ढूँढ रहा हूँ

दिल छोड़ के हर राहगुज़र ढूँढ रहा हूँ

बैठे हैं कहाँ वो मैं किधर ढूँढ रहा हूँ

वो पेश-ए-नज़र हैं तो नज़र क्यूँ नहीं आते

क्या मेरा क़ुसूर इस में अगर ढूँढ रहा हूँ

बारीक-निगारी की तमन्ना तो है लेकिन

मिलता नहीं मज़मून-ए-कमर ढूँढ रहा हूँ

फूकूँगा नशेमन की तरह अपने उसे भी

इस वास्ते सय्याद का घर ढूँढ रहा हूँ

कहते हैं जिसे उर्फ़ में सब सुब्ह-ए-बहाराँ

उस शाम-ए-जुदाई की सहर ढूँढ रहा हूँ

जमता ही नहीं नोक-ए-मिज़ा पर कोई आँसू

काँटे पे तुले जो वो गुहर ढूँढ रहा हूँ

ये जान के उस बुत का है पत्थर का कलेजा

ऐ 'बर्क़' मैं लोहे का जिगर ढूँढ रहा हूँ

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In Hindi By Famous Poet Rahmat Ilahi Barq Aazmi. is written by Rahmat Ilahi Barq Aazmi. Complete Poem in Hindi by Rahmat Ilahi Barq Aazmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.