बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे
बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे
जब आग़ोश-ए-तसव्वुर में तिरी तस्वीर देखेंगे
हरीम-ए-दिल के गिर्दा-गिर्द वो तनवीर देखेंगे
जलाल-ए-मेहर-ए-अनवर को भी बे-तौक़ीर देखेंगे
निगाह-ए-दिल से जिस दिन उस्वा-ए-शब्बीर देखेंगे
ख़लीलुल्लाह अपने ख़्वाब की ता'बीर देखेंगे
जुनून-ए-इश्क़ के इल्ज़ाम में ऐ ख़ुश-नवा क़ुमरी
गले में तू ने देखा तौक़ हम ज़ंजीर देखेंगे
अलम हो रंज हो ग़म हो बला हो शादमानी हो
जो तू ने लिख दिया ऐ कातिब-ए-तक़दीर देखेंगे
ख़ुदा की राह में सब कुछ लुटा कर बैठने वाले
ख़ुदा की कुल ख़ुदाई अपनी ही जागीर देखेंगे
मिरा आमाल-नामे धुल गया अश्क-ए-नदामत से
फ़रिश्ते क्या करेंगे कुछ न जब तहरीर देखेंगे
सितम-गारों को मिल जाएगा अपने ज़ुल्म का बदला
कभी आह-ए-ग़रीबाँ को न बे-तासीर देखेंगे
मोहब्बत ही बिना ऐ 'बर्क़' है तख़्लीक़ आलम की
मोहब्बत ही को हर आलम में आलम-गीर देखेंगे
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