दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश
दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश
है तिरी चश्म-ए-मो'तबर दर-पेश
लोग बीमार क्यूँ न पड़ जाते
जब कि था हुस्न-ए-चारा-गर दर-पेश
मैं हुआ चाहता था बे-क़ाबू
ज़िंदगी हो गई मगर दर-पेश
बात कहनी है और इस में भी
लफ़्ज़-ओ-मा'नी का है सफ़र दर-पेश
अहल-ए-नक़्द-ओ-नज़र परेशाँ हैं
जब से 'जामी' का है हुनर दर-पेश
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