दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश

दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश

है तिरी चश्म-ए-मो'तबर दर-पेश

लोग बीमार क्यूँ न पड़ जाते

जब कि था हुस्न-ए-चारा-गर दर-पेश

मैं हुआ चाहता था बे-क़ाबू

ज़िंदगी हो गई मगर दर-पेश

बात कहनी है और इस में भी

लफ़्ज़-ओ-मा'नी का है सफ़र दर-पेश

अहल-ए-नक़्द-ओ-नज़र परेशाँ हैं

जब से 'जामी' का है हुनर दर-पेश

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In Hindi By Famous Poet Rahman Jami. is written by Rahman Jami. Complete Poem in Hindi by Rahman Jami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.