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शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस - राही शहाबी कविता - Darsaal

शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस

शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस

हर तरफ़ तारीकियाँ और ऐसी तन्हाई कि बस

दिल की बर्बादी का अफ़्साना अभी छेड़ा ही था

अंजुमन में हर तरफ़ से इक सदा आई कि बस

उन की आँखों में जो अश्क आए तो यूँ आए कि उफ़

उन के होंटों पर हँसी आई तो यूँ आई कि बस

उम्र-भर के वास्ते चुप हो गया बीमार-ए-ग़म

आप ने की भी तो की ऐसी मसीहाई कि बस

क्या कहें 'राही' कि अपनों से हमें क्या क्या मिला

वो नवाज़िश वो करम वो इज़्ज़त-अफ़ज़ाई कि बस

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In Hindi By Famous Poet Rahi Shahabi. is written by Rahi Shahabi. Complete Poem in Hindi by Rahi Shahabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.