साथ ले कर अपनी बर्बादी के अफ़्साने गए
साथ ले कर अपनी बर्बादी के अफ़्साने गए
आबरू-ए-अंजुमन थे जो वो दीवाने गए
इब्तिदा ये थी कि दुनिया भर की नज़रें हम पे थीं
इंतिहा ये है कि ख़ुद से भी न पहचाने गए
तेरी फ़य्याज़ी से कब इंकार है साक़ी मगर
ऐसे मय-कश भी हैं कुछ जिन तक न पैमाने गए
महफ़िलें महकी हुई थीं जिन से वो गुल क्या हुए
शायद अब वो गोशा-ए-तुर्बत को महकाने गए
दूसरों के ग़म में रोती थीं जो शमएँ बुझ गईं
आग में ग़ैरों की जलते थे जो परवाने गए
तिश्नगी से ज़र्फ़ को ऐ साक़ी-ए-महफ़िल न तोल
उठ गए तो उम्र-भर को फिर ये दीवाने गए
मशवरे तो अक़्ल भी देती रही 'राही' मगर
दिल ने जो फ़रमाए थे वो फ़ैसले माने गए
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