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बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है - राही शहाबी कविता - Darsaal

बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है

बे-नाम सी ख़लिश कि जो दिल में जिगर में है

हलचल बपा किए हुए ये बहर-ओ-बर में है

जाती हुई बहार के मंज़र को देख कर

आती हुई बहार का मंज़र नज़र में है

है दीद अव्वलीं भी यक़ीनन हसीं मगर

बात और ही नज़ारा-ए-बार-ए-दिगर में है

आएगी एक मंज़िल बे-शाम-ओ-बे-सहर

पिन्हाँ ये राज़ गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर में है

'राही' वो अहल-ए-दिल हैं ब-क़ौल-ए-'अमीर' हम

सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है

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In Hindi By Famous Poet Rahi Shahabi. is written by Rahi Shahabi. Complete Poem in Hindi by Rahi Shahabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.