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तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता - राही कुरैशी कविता - Darsaal

तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता

तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता

घरों का रंज वीरानी है मेहमानों से वाबस्ता

सफ़र क़दमों से वाबस्ता है लेकिन रास्ता अपना

गुलिस्तानों से वाबस्ता न वीरानों से वाबस्ता

सदाक़त भी तो हो जाती है मक़्तूल-ए-फ़रेब आख़िर

हक़ीक़त भी तो हो जाती है अफ़्सानों से वाबस्ता

सुपुर्द-ए-ख़ाक हम ने ही किया कितने अज़ीज़ों को

हमीं ने कर दिए हैं फूल वीरानों से वाबस्ता

तही-दस्ती ने तन्हा कर दिया हर एक महफ़िल में

बुझी शमएँ नहीं रहती हैं परवानों से वाबस्ता

चराग़ों को रखा जाता है आँधी और तूफ़ाँ में

फ़रिश्तों को किया जाता है शैतानों से वाबस्ता

सहीफ़ों में कहीं तहरीर रौशन थी यही 'राही'

ज़मीं पर थे कभी इंसान इंसानों से वाबस्ता

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In Hindi By Famous Poet Rahi Quraishi. is written by Rahi Quraishi. Complete Poem in Hindi by Rahi Quraishi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.