कट गई रात मगर
हिज्र के जागते पैराहन से
रात की मल्गजी अफ़्सुर्दा-महक आती है
हल्क़ा-ए-बाद-ए-सबा गर्दन में
वक़्त सड़कों पे खिंचा फिरता है
राह जाती ही नहीं कोई बयाबाँ की तरफ़
हाथ बढ़ते ही नहीं अपने गरेबाँ की तरफ़
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
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हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग
गिरेबाँ का फ़ासला
जितने वहशी हैं चले जाते हैं सहरा की तरफ़
चोर
जूही का पौदा
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
तआरुफ़
तन्हाई
दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं
उम्मीद
दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूँ है