जितने वहशी हैं चले जाते हैं सहरा की तरफ़

जितने वहशी हैं चले जाते हैं सहरा की तरफ़

कोई जाता ही नहीं ख़ेमा-ए-लैला की तरफ़

हम हरीफ़ों की तमन्ना में मरे जाते हैं

उँगलियाँ उठने लगीं दीदा-ए-बीना की तरफ़

हर तरफ़ सुब्ह ने इक जाल बिछा रक्खा है

ओस की बूँद कहाँ जाती है दरिया की तरफ़

हम भी अमृत के तलबगार रहे हैं लेकिन

हाथ बढ़ जाते हैं ख़ुद ज़हर-ए-तमन्ना की तरफ़

(812) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Rahi Masoom Raza. is written by Rahi Masoom Raza. Complete Poem in Hindi by Rahi Masoom Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.