सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
तुम हवा हो तो ख़लाओं से लिपट कर देखो
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने
हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो
ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में
वक़्त के इंतिज़ार में वो है
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है
सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो
हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा
आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न की
यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए