हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
हवा के हाथ में इक आब-दार ख़ंजर था
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(617) Peoples Rate This
हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने
सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो
सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा
लज़्ज़त का ज़हर वक़्त-ए-सहर छोड़ कर कोई
हादसों के ख़ौफ़ से एहसास की हद में न था
शराफ़तों के रंग में शरारतें ख़लत-मलत
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है
मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है
आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न की