बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए
दरून-ए-किज़्ब-ओ-इफ़्तिरा सदाक़तें ख़लत-मलत
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हम न होते काख़-ए-मुश्त-ए-ख़ाक होता ग़ालिबन
सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद
हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग
हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
शराफ़तों के रंग में शरारतें ख़लत-मलत
ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है
मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है
सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो