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मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ - राही फ़िदाई कविता - Darsaal

मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ

मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ

हमारे अहद को सालेह निसाब दे जाओ

शहीर-ए-इल्म की झोली कमाल से ख़ाली

ख़ुदा के वास्ते कोई ख़िताब दे जाओ

कभी तो हुरमत-ए-सैराबी-ए-नज़र खुल जाए

समुंदरों को तिलिस्म-ए-सराब दे जाओ

हक़ीक़तों को तमाशा नहीं बनाऊँगा

मुनाफ़िक़त की हवा है नक़ाब दे जाओ

तुम्हारी आख़िरी उम्मीद बन के लौटूँगा

विदा की घड़ियों का हिसाब दे जाओ

क़दीम रौशनियों से उन्हें शिकायत है

तो शप्परों को नया आफ़्ताब दे जाओ

कोई तो मशग़ला-ए-ना-मुराद जारी हो

ज़बाँ को बदरिक़ा-ए-इंक़िलाब दे जाओ

इसी में ख़ंदा-लबी शान-ए-बे-नियाज़ी है

हर एक तीर का साकित जवाब दे जाओ

सफ़र-ए-नसीब है 'राही' मिसाल-ए-बाद-ए-रवाँ

जहात-ए-शश की ज़माम ओ रिकाब दे जाओ

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In Hindi By Famous Poet Rahi Fidai. is written by Rahi Fidai. Complete Poem in Hindi by Rahi Fidai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.