तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे
तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे
कि लिखने वाले तो मुद्दत से होश खो बैठे
तरस गई हैं निगाहें ज़ियादा क्या कहिए
सनम सनम रहे बेहतर ख़ुदा न हो बैठे
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ता'लीम वो हुई है आम
ख़िरद तो ख़ैर जुनूँ से भी हाथ धो बैठे
बुरा किया कि तलातुम में ना-ख़ुदाई की
किनारा भी न मिला नाव भी डुबो बैठे
मरीज़-ए-इश्क़ का जल्दी जनाज़ा निकलेगा
कुछ और देर पता पूछते रहो बैठे
तमाम शहर में बाँटी है दर्द की ख़ैरात
हम उस की दीन को दिल में नहीं समो बैठे
तुम्हारी बज़्म बहुत तंग और दश्त वसीअ'
चले तो आए घड़ी-दो-घड़ी ही गो बैठे
बुझी न आतिश-ए-दिल ही किसी तरह 'राहील'
वगरना यार तो आँखें बहुत भिगो बैठे
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