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साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के - राहील फ़ारूक़ कविता - Darsaal

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

निय्यत तो बाँध सकते हैं पीछे इमाम के

क़दमों में दें जगह हमें अहल-ए-करम कहीं

हम राँदगाँ हैं सज्दा-गह-ए-ख़ास-ओ-आम के

आँखों की बात छिड़ गई बातों के दरमियान

मय-ख़ाने वाले रह गए पैमाने थाम के

वाइज़ को ऊँच-नीच मोहब्बत की क्या पता

ये मसअले नहीं उलमा-ए-किराम के

क्या ख़ूब वही पीर-ए-ख़राबात को हुई

झगड़े हैं सब हराम हलाल-ओ-हराम के

दो-चार अश्क हाल पे मेरे बहाइए

शबनम गिरे लबों पे किसी तिश्ना-काम के

आता न हो बरात सितारों की ले के चाँद

रुख़्सार सुर्ख़ क्यूँ हुए जाते हैं शाम के

इंसान हैं फ़रिश्ता-ओ-इबलीस हम नहीं

क़ाइल नहीं रुकू-ओ-सुजूद-ओ-क़याम के

अहल-ए-ज़माना उन से न बाँधें तवक़्क़ुआ'त

उश्शाक़ आदमी हैं हसीनों के काम के

शहर-ए-बुताँ में हैं जो दर-ए-मय-कदा पे दफ़्न

पहुँचे हुए बुज़ुर्ग थे 'राहील' नाम के

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In Hindi By Famous Poet Raheel Farooq. is written by Raheel Farooq. Complete Poem in Hindi by Raheel Farooq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.