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जहाँ कहीं भी तिरे नाम की दुहाई दी - राहत सरहदी कविता - Darsaal

जहाँ कहीं भी तिरे नाम की दुहाई दी

जहाँ कहीं भी तिरे नाम की दुहाई दी

मुझे पलट के ख़ुद अपनी सदा सुनाई दी

निगल रही थी मिरे आइनों की तारीकी

कि फिर कहीं से अचानक किरन दिखाई दी

तिरे जमाल ने बख़्शी निगाह मिट्टी को

तिरे ख़याल ने तौफ़ीक़-ए-लब-कुशाई दी

अता है उस की दिया दिल मुझे समुंदर का

बना के चाँद तुझे जिस ने दिलरुबाई दी

सुना है फिर कहीं अंधे तमाश-बीनों ने

किसी चराग़ को कल दाद-ए-ख़ुश-नुमाई दी

तो उम्र बीत चुकी थी चमन महकने की

जब उस ने क़ैद से 'राहत' मुझे रिहाई दी

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In Hindi By Famous Poet Rahat Sarhadi. is written by Rahat Sarhadi. Complete Poem in Hindi by Rahat Sarhadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.