जहाँ कहीं भी तिरे नाम की दुहाई दी
जहाँ कहीं भी तिरे नाम की दुहाई दी
मुझे पलट के ख़ुद अपनी सदा सुनाई दी
निगल रही थी मिरे आइनों की तारीकी
कि फिर कहीं से अचानक किरन दिखाई दी
तिरे जमाल ने बख़्शी निगाह मिट्टी को
तिरे ख़याल ने तौफ़ीक़-ए-लब-कुशाई दी
अता है उस की दिया दिल मुझे समुंदर का
बना के चाँद तुझे जिस ने दिलरुबाई दी
सुना है फिर कहीं अंधे तमाश-बीनों ने
किसी चराग़ को कल दाद-ए-ख़ुश-नुमाई दी
तो उम्र बीत चुकी थी चमन महकने की
जब उस ने क़ैद से 'राहत' मुझे रिहाई दी
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