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बुतान-ए-ख़िश्त-ओ-संग से कलाम कर के आ गया - राहत सरहदी कविता - Darsaal

बुतान-ए-ख़िश्त-ओ-संग से कलाम कर के आ गया

बुतान-ए-ख़िश्त-ओ-संग से कलाम कर के आ गया

कि मैं तुम्हारे शहर में भी शाम कर के आ गया

वहाँ किसी को याद भी नहीं था मेरा नाम तक

जहाँ मैं अपनी ज़िंदगी तमाम कर के आ गया

गली में खेलता हुआ मिला था अपना बचपना

जिसे मैं हसरतों भरा सलाम कर के आ गया

तुम्हारा नाम फिर कुरेद कर उदास पेड़ पर

ख़िज़ाँ में फ़स्ल-ए-गुल का एहतिमाम कर के आ गया

तकल्लुफ़ात में गुज़र गई हयात-ए-सरहदी

कि जैसे अजनबी के घर क़याम कर के आ गया

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In Hindi By Famous Poet Rahat Sarhadi. is written by Rahat Sarhadi. Complete Poem in Hindi by Rahat Sarhadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.