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बना के तल्ख़ हक़ाएक़ से पर निकलती है - राहत सरहदी कविता - Darsaal

बना के तल्ख़ हक़ाएक़ से पर निकलती है

बना के तल्ख़ हक़ाएक़ से पर निकलती है

चटान में भी अगर हो ख़बर निकलती है

मिरी तरफ़ से इजाज़त है देख लो ख़ुद ही

कहीं जुदाई की सूरत अगर निकलती है

वो तीरगी है कि ख़ुद राह ढूँडने के लिए

चराग़ हाथ में ले कर सहर निकलती है

ग़ुरूर इतना भी क्या अपनी शान शौकत पर

ये ख़ुश-गुमानी तो कटवा के सर निकलती है

मिरे ख़याल में तस्ख़ीर-ए-शश-जिहत के लिए

तिरी गली से कहीं रहगुज़र निकलती है

न रात सुनती है 'राहत' फ़ुग़ान-ए-सैद यहाँ

न धूप देख के ज़र्फ़-ए-शजर निकलती है

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In Hindi By Famous Poet Rahat Sarhadi. is written by Rahat Sarhadi. Complete Poem in Hindi by Rahat Sarhadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.